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आजादी के 73 साल बाद भी भारत में भुखमरी आखिर क्यों?

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आजादी के 73 साल बाद भी भारत में भुखमरी आखिर क्यों?

स्‍वतंत्रता के 73 वर्षों के बाद भी खाद्य सुरक्षा के मामले में भारत की स्थिति दयनीय है। भारत के लिए यह एक गंभीर विफलता है। कुछ समय से भारत खाद्यान्न के मामले में अब पूर्ण रूप से आत्म निर्भर हो चुका है। भारत की जनसंख्‍या के अनुपात में हमारे पास अन्न, फल और सब्जियों की अतिरिक्‍त मात्रा उपलब्ध है। इसके बावजूद देश में भूख की इतनी खराब स्थिति क्यों है?

  • उपभोक्ता‍ मामलों के विभाग के अनुसार 62,000 टन अनाज फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के गोदामों में खराब हो गया। यह आंकड़ा 2011-2017 के बीच का है। परंतु यही स्थिति लगभग प्रतिवर्ष बनी रहती है।
  • इंटरनेशनल इकॉनॉमिक रिलेशन्‍स का कहना है कि बहुत से फर्जी राशन कार्ड बने हुए हैं। इससे खाद्यान्ने की वास्‍तविक जरूरत रखने वालों को यह उपलब्ध ही नहीं है। यह भारत की खाद्य पारिस्थितिकी के खराब प्रबंधन को दर्शाता है।
  • भारत में खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए सरकार को कृषि उपज की पारिश्रमिक संबंधी कीमतों की भरपाई को सुनिश्चित करना होगा। इस हेतु अधिक से अधिक कृषि उपज पर न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य दिया जाना चाहिए। इससे किसान अपने लिए जरूरी खाद्य सामग्री खरीदने की क्षमता रख सकेंगे।
  • भारत को सार्वजनिक खरीद और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार करना चाहिए।

 

इस योजना में 65 वर्ष से ऊपर के निराश्रित लोगों को प्रतिमाह दस किलो अनाज दिया जाता है। केन्द्र ने राष्ट्रीय वृद्धावस्‍था पेंशन योजना का लाभ लेने वालों को इस योजना से वंचित रखा है। केरल जैसे राज्य में लगभग सभी बुजुर्ग पेंशन योजना का लाभ ले रहे हैं। अत: वे अन्न्पूर्णा योजना से बाहर हैं। इस समस्‍या का तुरंत निदान किया जाना चाहिए।

ग्‍लोबल पल्‍स कन्‍फडेरेशन के अनुसार स्‍वस्‍थ और संतुलित भोजन में दालों की अहम् भूमिका होती है। इससे कैंसर,डायबीटिज और हृदय रोग आदि से बचाव में मदद मिलती है। वर्ल्‍ड फूड प्रोग्राम में भी अन्य भोजन सामग्री के साथ 60 ग्राम दालों को शामिल किया गया है।

 

पिछले दो वर्षों से भारत में दालों के उत्पादन में वृद्धि हुई है। लेकिन उनके उपभोग की तुलना में उत्पादन उतना नहीं हुआ है। लेकिन इनकी खरीदी और बफर स्‍टॉक में वृद्धि हुई है। सरकार को चाहिए कि वह तत्‍काल कदम उठाते हुए दालों के न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य का निर्धारण करते हुए इन्‍हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल करे। इससे किसानों की आय में भी वृद्धि होगी और भारत में कुपोषण की समस्‍या से भी निपटने में मदद मिलेगी।

‘द हिन्‍दू’ में प्रकाशित राजमोहन उन्‍नीयन के लेख पर आधारित। 17 दिसम्‍बर, 2020
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