Advertisement
Categories: PopularSlider

आदर्श संतुलन की ओर बढ़ते उच्च न्यायालय

Advertisement

हाल ही में उच्चतम न्यायालय का चुनाव आयोग से जुड़ा एक निर्णय, न्यायिक राजनीति का एक उदाहरण है। एक मामले की सुनवाई के दौरान मद्रास उच्च न्यायालय ने महसूस किया कि राज्य के चुनावों में, चुनाव आयोग कोविड सुरक्षा दिशानिर्देशों को लागू करने में विफल रहा, जिसके परिणामस्वरूप महामारी तेजी से फैली। अपनी मौखिक टिप्पणियों में न्यायालय ने चुनाव आयोग पर हत्या के आरोप तक लगाए जाने की चेतावनी दी थी।

 

 

 

 

इसको लेकर उच्चतम न्यायालय में अपील की गई थी। इस पर उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग के प्रदर्शन की प्रशंसा भी की और मौखिक टिप्पणियों के प्रभाव को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि “सुनवाई के दौरान के अवलोकन निर्णय का नहीं होते हैं।’’ इस प्रकार उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग और उच्च न्यायालय के बीच के इस संघर्ष का खूबसूरती से निपटारा कर दिया। साथ ही न्यायालय की सुनवाई के दौरान अवलोकन पर आधारित मौखिक टिप्पणी पर मीडिया रिपोर्टिंग के अधिकारों को बहाल रखा। पूरे मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने न्याय से जुड़े एक आदर्श संतुलन को स्थापित करने का प्रयास करते हुए सुनवाई की।

 

कुछ प्रमुख बिंदु

 

  1. कोर्ट की मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग करने के मीडिया के अधिकार को बहाल करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा की गई।
  2. न्यायिक प्रक्रिया सार्वजनिक जांच के अधीन है। अतः उसमें पारदर्शिता और जवाबदेही होनी चाहिए।
  3. न्यायाधीशों को कानून और सत्यनिष्ठा के घेरे में रहकर ही काम करना चाहिए।
  4. न्यायधीशों को खुली अदालत में न्यायिक स्वामित्व के अनुसार ही आचरण करते हुए किसी गलत टिप्पणी से बचना चाहिए।
  5. न्यायिक प्रक्रिया में संवैधानिक मूल्यों की रक्षा हेतु भाषा बहुत महत्व रखती है। अतः ऐसी भाषा का प्रयोग न किया जाए, जिसका गलत मायने निकाला जा सके।
  6. न्यायालय ने चेतावनी दी कि न्यायाधीश अभद्र टिप्पणियों, अशोभनीय मजाक या तीखी आलोचना द्वारा अपने अधिकार का दुरूपयोग नहीं कर सकते।
  7. न्यायिक संयम और अनुशासन न्याय के सामान्य प्रशासन के लिए उतना ही आवश्यक है, जितना कि सेना की प्रभावशीलता के लिए है।

निसंदेह राज्य अपने नागरिकों के जीवन की रक्षा करने और स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूरी के लिए बाध्य है, लेकिन न्यायालय को प्रशासनिक निर्णय प्रक्रिया की केवल समीक्षा का अधिकार है।

प्रशासनिक निर्णयों के अवैध, विकृत या असंवैधानिक होने की स्थिति में ही न्यायालय उसको प्रभावित कर सकता है। वह कार्यपालिका का स्थान नहीं ले सकता। वह कार्यपालिका को जिम्मेदार ठहरा सकता है।

 

 

 

 

 

प्रजातंत्र में तीनों मुख्य अंगों के बीच तनाव या मतभेद के प्रसंग आ सकते हैं। परंतु संकटकाल में तीनों से एकजुट होकर काम करने की अपेक्षा की जाती है। न्यायाधीशों से भी सामाजिक नेतृत्व की अपेक्षा की जा सकती है, क्योंकि वे कानून के शासन के रक्षक होते हैं। ‘जज इन ए डेमोक्रेसी’ नामक अपनी पुस्तक में बराक लिखते हैं कि ‘न्यायिक नीतियां और न्यायिक दर्शन न्यायपालिका के आधार हैं। संकटकाल में यही हमारा मार्गदर्शन करते हैं। न्यायाधीशों को इसी का अनुसरण करना चाहिए।’

 

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित आर सी लाहोटी के लेख पर आधारित। 15 मई, 2021

Advertisement
प्रधान संपादक

Recent Posts

युवा यादव समिति द्वारा श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव की हुई बैठक

टीकमगढ़ l युवा यादव समिति द्वारा हर वर्ष भी भांति इस वर्ष भी भगवान श्री…

2 years ago

जल संरक्षण है हम सब का सपना ताकि खुशहाल रहे भारत अपना.. बूंद बूंद का करें सदुपयोग-विवेक अहिरवार

  टीकमगढ़। जिले की जनपद पलेरा में संचालित केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना अटल भू…

2 years ago

खतरे में तालाब संस्कृति- बुंदेलखंड की पारंपरिक संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं ‘तालाब

  टीकमगढ़। क्षेत्रफल की दृष्टि में टीकमगढ़ जिले का सबसे बृहद तालाब मोहनगढ़ तहसील अंतर्गत…

2 years ago

4 करोड़ 42 लाख की लागत से बनेगा आमघाट पुल, आधा सैकड़ा ग्रामीणों को मिला बरसाती वरदान

  विधायक शिशुपाल यादव ने किया भूमिपूजन टीकमगढ़ । टीकमगढ़ जिले के अंतर्गत आने वाले…

2 years ago

युवक कांग्रेस ने भाजपा सरकार के खिलाफ की जमकर नारेबाजी, हजारों कार्यकर्ताओं ने किया तहसील का घेराव

  टीकमगढ़।युवक कांग्रेस टीकमगढ़ द्वारा आज हल्ला बोल कार्यक्रम कर बड़ागांव तहसील का घेराव किया…

2 years ago

सांसद खेल स्पर्धा 2023 का ओयाजन हेतु बैठक संपन्न खेल स्पर्धा में खो-खो, कबड्डी, लंबी कूद,लांग जंप) एवं 100मीटर की दौड़ सम्मिलित

  टीकमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के लोकप्रिय सांसद एवं केन्द्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ…

2 years ago
Advertisement