टीकमगढ़ । प्रद्युम्न खरे । आज देश भर में 62 करोड़ किसानमजदूर व 250 से अधिक किसान संगठन इन काले काले कानूनों के खिलाफ आवाज उठा रहे है पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी व उनकी सरकार सब ऐतराज दरकिनार कर देश.” को बरगला रहे है। अन्नदाता किसान की बात सुनना तो दूर, संसद में उनके नुमाईदों की आवाज को दबाया जा रहा है और सड़कों पर किसान मजदूरों को लाठियों से पिटवाया जा रहा है। संघीय ढांचे का उल्लंघन कर, संविधान को रौंदकर संसदीय प्रणाली को दरकिनार कर तथा बहुमत के आधार पर बाहुबली मोदी सरकार ने संसद के अंदर तीन काले कानूनों को जबरन तथा बगैर किसी चर्चा द राय मशवरे के पारित कर लिया है। यहॉ तक कि राज्यसभा में हर संसदीय प्रणाली व प्रजातंत्र को तार-तार कर ये काले कानून पारित किए गए। कांग्रेस पार्टी सहित कई राजनैतिक दलों ने मतविभाजन की मांग की, जो हमाश–> संवैधानिक अधिकार है। 62 करोड़ लोगों की जिंदगी से जुड़े काले कानूनों को संसद के परिसर के अंदर सिक्योरिटी गार्ड लगाकर, सांसदों के साथ धकक््का-मुक्की कर बगैर किसी मतविभाजन के पारित कर लिया गया ।
देश के किसान खेत मजदूर -मंडी के आढती -मंडी मजदूर -मुनीम -कर्मचारी -ट्रांसपोर्ट व लाखों करोडों के ऐतराज इस प्रकार हैं,-
पहलाअनाज मंडी सब्जी मंडी यानि च्डब खत्म करने से कृषि उपज खरीद व्यवस्था ‘पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। ऐसे में किसानों को न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य डैच मिलेगा न ही बाजार भाव के अनुसार फसल की कीमत। अगर पूरे देश की कृषि उपज मंडी व्यवस्था ही खत्म हो गई , तो इससे सबसे बड़ा नुकसान किसान खेत मजदूर को होगा और सबसे बड़ा फायदा गिने चुने पूंजीपतियों को]
दूसरामोदी सरकार का दावा है कि अब किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है, पूरी तरह से सफेद झूठ है। आज भी किसान अपनी फसल किसी भी प्रांत में ले जाकर बेच सकता है। परंतु वास्तविक सत्य यह है कि देश का 86 प्रतिशत किसान 5 एकड़ से कम भूमि का मालिक है। जमीन की औसत मल्कियत 2 एकड़ या उससे कम है। ऐसे में 86 प्रतिशत किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी के अलावा कहीं और ट्रांसपोर्ट कर न ले जा सकता या बेच सकता है। मंडी प्रणाली नष्ट होते ही सीधा प्रहार स्वाभाविक तौर से किसान पर होगा।
तीसरामंडियां खत्म होते ही अनाज -सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों करोडो मजदूरों, आढ़तियों मुनीम,दुलाईदारों ,ट्रांसपोर्टरों, शेलर आदि की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप ही खत्म हो जाएगी.”
चौथाकिसान खेत के नजदीक अनाज मंडी -सब्जी मंडी में उचित दाम किसान के सामूहिक संगठन तथा मंडी में खरीदारों के आपस के कॉम्पटिशन के आधार पर मिलता है। मंडी में पूर्व निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य डैच किसान की फसल के मूल्य निर्धारण का बेंचमार्क है। यही एक उपाय है, जिससे किसान की उपज की ._ सामूहिक तौर से प्राईस डिस्कवरी यानि मूल्य निर्धारण हो पाता है। अगर मुट्ठीभर पूंजीपतियों ने किसाज़ खेत . से खरीदी हुई फसल का डैछ नहीं दिया, तो क्या मोदी सरकार डै> देगी। किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य. आखिर मिलेगा कैसे? स्वाभाविक तौर से इसका नुकसान किसान को होगा। नशा…
पॉचवांअनाज -सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही प्रांतों की आया भी खत्म हो जाएगी। प्रांत मार्केट फीस व ग्रामीण विकास फंड के माध्यम से ग्रामीण अंचल का ढांचागत विकास करते हैं व खेती को प्रोत्साहन देते है।
छटवॉकृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अध्यादेश की आड़ में मोदी सरकार असल में शांता कुमार कमेटी की रिपोर्ट लागू करना चाहती है, ताकि एफसीआई के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी ही न करनी पड़े और सालाना 80,000 से 1 लाख करोड़ की बचत हो। इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव खेत खलिहान पर पड़ेगा।
सांतवॉ-अध्यादेश के माध्यम से किसान को ठेका प्रथा में फसाकर उसे अपनी ही जमीन में मजदूर बना दिया जाएगा। क्या दो से पॉच एकड़ भूमि का मालिक गरीब किसान बड़ी-बडी कंपनियों के साथ फसल की खरीद फरोख्त का कॉरट्रैक्ट बनाने समझने व साईन करने में सक्षम है? साफ तौर से जवाब नहीं में है। कॉट्रैक्ट फार्मिंग पर निर्भर हो जाएगा और बडी कंपनियाँ किसान के खेत में उसकी फसलकी मनमर्जी की कीमत निर्धारित करेंगी। यह इनकी जमींदारी प्रथा नहीं तो क्या है
आठवॉ-कृषि उत्पाद खाने की चीजों व फल-फूल की स्टॉक लिमिट को पूरी तरह हटाकर आखिरकार न किसान को फायदा होगा और न ही उपभोक्ता को बस चीजों की जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले मुद्ठीमर लोगों को फायदा होगा। वे सस्ते भाव खरीदकर कानूनन जमा खोरी कर महंगे दामों पर चीजों को बेच पाएगें।
नॉवांअध्यादेशों में न तो खेत मजदूरों के अधिकारों के संरक्षण का कोई प्रावधान है और न ही जमीन जोतने वाले बंटाईदारों या मुजारों के अधिकारों के संरक्षण का ऐसा लगता है कि उन्हें पूरी तरह से खत्म कर . अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। *
दसवॉतीनों अध्यादेश_संघीय ढांचे पर सीधे-सीधे हमला हैं| खेती व मंडिया संविधान के सांतवे शेडयूल में प्रांतीय अधिकारों के क्षेत्र में आते हैं। परन्तु मोदी सरकार ने प्रांतों से राय करना तक उचित नहीं समझा खेती का सरक्षण और प्रोत्साहन स्वाभाविक तौर से प्रांतों का विषय है, परंतु उनकी कोई राय नहीं ली गई । खेत खलिहान व गांव की तरक्की के लिए लगाई गई मार्केट फीस व ग्रामीण विकास फीस फंड को एकतरफा तरीके से खत्म कर दिया गया है। यह अपने आप में संविधान की परिपाटी के विरूद्ध है। हे +. अरि्कूर -ग्यारहवां विगत 50 दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर देश के विभिन्न किसान संगठनों द्वारा समर्थित किसानों द्वारा तीन नये कृषि कानूनों को वापिस लेने की मांग को लेकर अपना धरना प्रदर्शन कर रहे है, लेकिन इस देश के अभिमानी शासक द्वारा किसानों की मांग पर कोई विचार नहीं किया जा रहा है। अभी तक लगभग 70
किसानों की आन्दोलन अवधि में मृत्यु हो बुक है। ढड़ाके की ठण्ड में किसान अपने हक लिए निरंतर
निरंवुश सरकार से पूझ्न रहा है। सरकार द्वारा कितानों ढी मांगों क्षा निशतकरण ढरने की दिशा में शीघ्र कम ४ «»एठग्रे जाने की आवश्यकता है।
गहामरारी की आड़ में किसानों की आपदा को जुट्ठीमर पृंजीपतियों के अकसर में बदलने की मोदी . एरकार की साजिश को देश का अन्नदाता किसान ह मजदूर क्षमी गहीं भूलेगा। हि
इसलिए इन तीनों काले कानूनों हो बिना सर्द दापित लेने का आग्रह करते है। इस ज्ञापन को महामहिम राष्ट्रपति महोदव को अवगत कराने का कष्ट करें ज्ञापन देते वक्त पूर्व मंत्री यादवेंद्र सिंह कांग्रेस कमेटी जिला अध्यक्ष महेश यादव प्रदेश सचिव शाश्वत सिंह बुंदेला प्रदेश सचिव किरण अहिरवार प्रदेश सचिव पंकज अहिरवार यूथ कांग्रेस जिला अध्यक्ष देवेंद्र भास्कर पूर्व मंडी अध्यक्ष सूर्य प्रकाश मिश्रा पिछड़ा वर्ग कांग्रेस जिला अध्यक्ष प्रणव जयसवाल कार्यकारी अध्यक्ष गौरव शर्मा रिंकू भदौरा संजय नायक समेत अन्य लोग मौजूद रहे ।
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