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राम सेतु से जुड़े ‘पक्के सबूत’ जुटाने के लिए प्रोजेक्ट को मिली मंजूरी।

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राम सेतु से जुड़े ‘पक्के सबूत’ जुटाने के लिए प्रोजेक्ट को मिली मंजूरी।

 

सरकार ने राम सेतु में इस्तेमाल किए गए भारत और श्रीलंका के बीच 48 किलोमीटर लंबी पत्थरों की श्रृंखला पर अध्ययन करने के लिए अंडरवाटर रिसर्च प्रॉजेक्‍ट को मंजूरी दे दी है. इस रिसर्च के उद्देश्य के बारे में बात करते हुए, केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति राज्य मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि दुनिया को राम सेतु के बारे में जानना चाहिए।

राम सेतु को एडम ब्रिज या नाला सेतु के नाम से भी जाना जाता है, रामायण के कारण यह पुल हिंदू संस्कृति में धार्मिक महत्व रखता है. वहीं सरकार के साथ ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के केंद्रीय सलाहकार बोर्ड ने भी पानी के नीचे तैरने वाले पत्थरों के रिसर्च परियोजना के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

इस रिसर्च में वैज्ञानिक, औद्योगिक अनुसंधान परिषद और राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान राम सेतु के गठन के पीछे की प्रक्रिया पर रिसर्च करेंगे और यह भी कि क्या संरचना के आसपास कोई जलमग्न बस्तियां हैं या नहीं।

सेतु के आसपास के क्षेत्रों का लगेगा पता

 

केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति राज्य मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि NIO को ASI से राम सेतु की आयु और पुल के आसपास के क्षेत्र का पता लगाने के लिए अनुमति मिल गई है. जानकारी के मुताबिक इस रिसर्च में वैज्ञानिक सेतु की आयु जीवाश्मों और अवसादन के अध्ययन के माध्यम से पता चलेगी कि क्या यह रामायण काल ​​से संबंधित है. वहीं सूत्रों की माने तो तमिलनाडु में आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए इस रिसर्च की शुरुआत इस साल किया जा सकता है.

पानी में तैरता है ये पुल

 

राम सेतू भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र में पड़ने वाला एक पुल है. पानियों पर तैरने वाला ये पुल कोरल और सिलिका पत्थरों का बना हुआ है. इस सेतु का जिक्र हिंदू महाकाव्य में भी किया गया है. हिंदू महाकाव्‍य रामायण के अनुसार, भगवान राम अपनी पत्‍नी सीता को जब लंका के राजा रावण की कैद से बचाने निकले थे तो रास्‍ते में समुद्र पड़ा, जिसके बाद उनकी वानर सेना ने ही इस पुल का निर्माण किया था. रामायण के मुताबिक वानरों ने छोटे-छोटे पत्‍थरों की मदद से इस पुल को तैयार किया था. ये पुल करीब 48 किलोमीटर लंबा है और मन्नार की खाड़ी और पॉक स्ट्रेट को एक-दूसरे से अलग करता है. कई जगह इसकी गहराई केवल 3 फुट है तो कहीं-कहीं 30 फुट तक है।

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