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श्री महाकालेश्वर मंदिर के आंगन मेें मिला 9 वीं शताब्दी का जलाधारी शिवलिंग.

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श्री महाकालेश्वर मंदिर के आंगन मेें मिला 9 वीं शताब्दी का जलाधारी शिवलिंग.

विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर के समीप चल रही खुदाई में मंगलवार को जलाधारी शिवलिंग निकला है। पुरातत्वविद् के अनुसार यह प्राचीन संपदा 9 वीं शताब्दी की हैं। मंदिर प्रशासन के अधिकारियों द्वारा फिलहाल खुदाई स्थल को सुरक्षित करा दिया गया है।पुरातत्वविद् शुभम केवलिया के अनुसार शिवलिंग का ऊपरी भाग टूटा हुआ है। प्रतिमा विज्ञान के अनुसार शिवलिंग के तीन भाग हैं, ब्रह्मा- विष्णु- महेश हैं। इसमें जो ऊपरी गोलाकार भाग टूटा हुआ है वह महेश या शिव भाग है।

जलाधारी का मुख उत्तर दिशा की ओर है, यह स्वाभाविक ही है। पूर्व में निकली मूर्तियां भी खण्डित ही हैं क्योंकि सुरक्षित रही सभी मूर्तियां मराठा काल में बने नवीन मंदिर में उपयोग की गई हैं। खुदाई में क्षतिग्रस्त प्रतिमा, पुरासंपदा का प्राप्त होना इस बात का प्रमाण हैं कि 11-12 वीं शताब्दी में आक्रांताओं द्वारा महाकाल मंदिर मंदिर पर आक्रमण किया गया था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

इसके हमारे पास अब प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। बता दें कि दो दिन पहले ही बारिश के चलते विभाग ने यहां खुदाई का काम बंद किया था। लगातार बारिश के चलते मिट्टी के हटने से शिवलिंग दिखाई देने लगा है। भूगर्भ से शिवलिंग निकलने के बाद यहां मंदिर की श्रृंखला होने की संभावना को बल मिला है।

 

 

रहस्यों से भरी बाबा महाकाल की नगरी

नर कंकाल-प्राचीन मूर्तियों के साथ अब निकला अदभुत जलाधारी शिवलिंग

महाकाल मंदिर क्षेत्र के गर्भ में इतिहास अब गहराता जा रहा है। मंगलवार को देर शाम पुरातत्व विभाग की देख रेख में चल रही खुदाई के दौरान विशाल जलाधारी शिवलिंग निकला है जिसकी खूबसूरती देख हर कोई हैरान है। 20-22 फुट की गहराई में पहले परमार कालीन शिव परिवार की मूर्तियां निकली, फिर मंदिर का चबूतरा दीवार व अन्य सामग्री और अब साक्षात शिव रूपी विशाल शिवलिंग कई सवाल खड़े कर रहा है कि इस इस शिवलिंग का रहस्य क्या है? ये अब बुधवार को पुरातत्व अधिकारियों की टीम जब मंदिर पहुंचेगी तो जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा, फिलहाल जिला प्रशासन व पुरातत्व आधिकारियों के निर्देश अनुसार शिवलिंग को चद्दर(पतरे) से ढकवा दिया है जिससे शिवलिंग सुरक्षित रहे।

 

 

 

 

 

 

 

 

विगत दिनों आई जांच टीम ने बताया था कि मंदिर में मिले अवशेषों से स्पष्ट हुआ है कि मंदिर शुंग काल में भी स्थापित रहा है। दक्षिण में शुंग काल की दीवार व उत्तर में परमार कालीन मूर्तियां 11वीं, 12 वीं शताब्दी की मिली है जिसमें स्तम्भ खंड, शिखर के भांग, रथ का भांग, भरवाई कीचक ये सब शामिल है और इस सबसे स्पष्ट होता है मंदिर की

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