भारत सरकार कोरोना महामारी के चलते अतिरिक्त खर्च (इसमें वैक्सीन भी शामिल है) के लिए नया टैक्स लगाने पर विचार कर रही है, इकोनॉमिक टाइम्स ने सूत्रों का हवाले से एक रिपोर्ट में उल्लेख किया है। केंद्र सरकार ने राजस्व बढ़ाने के उपायों पर कुछ प्रारंभिक बातचीत की है, लेकिन उपकर या अधिभार के रूप में नई लेवी लगाने के बारे में अंतिम फैसला केंद्रीय बजट के करीब लिया जाएगा, जिसकी घोषणा 1 फरवरी को होने वाली है। यहां उल्लेख करने योग्य बात यह है कि इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों ने अपने बजट की सिफारिशों में कहा है कि कोई नया टैक्स नहीं लगाया जाए क्योंकि अर्थव्यवस्था खराब स्थिति में है। एक्सपर्ट्स ने महामारी को लेकर उपकर वाले विचार का भी विरोध किया और कहा कि यह समय सही नहीं है।
ईटी ने सूत्रों का हवाला से कहा कि उपकर के प्रस्ताव पर चर्चा की गई है। प्रारंभिक चर्चा उच्च आय वाले और कुछ अप्रत्यक्ष टैक्स पर छोटे उपकर (cess) लगाने को लेकर केंद्रित रही। एक अन्य प्रस्ताव पेट्रोलियम और डीजल पर या सीमा शुल्क पर उत्पाद शुल्क को जोड़ने के लिए है। वस्तु एवं सेवा कर (GST) जीएसटी काउंसिल द्वारा प्रशासित किया जाता है और केंद्र इस पर एकतरफा उपकर नहीं लगा सकता है। प्रकाशन के अनुसार, वैक्सीन रोलआउट पर लॉजिस्टिक समेत 60,000-65,000 करोड़ रुपए खर्च का अनुमान है।
केंद्र सरकार कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम की लागत वहन कर सकती है। जो 16 जनवरी से शुरू हो रहा है। बिजनेस डेली के अनुसार, सरकार अगले वित्तीय वर्ष में बुनियादी ढांचे पर अतिरिक्त खर्च कर सकती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना को आगे बढ़ा सकती है। सरकार टैक्स बढ़ाने के बजाय जल्दी से धन उत्पन्न करने के लिए उपकर लगाना चाहती है। केंद्रीय उपकर कलेक्शन राज्यों के साथ शेयर नहीं किए जाते हैं।
इससे पहले कोरोना महामारी फैलने की वजह धन की कमी के चलते कई राज्यों ने अपने करों पर एक उपकर लगाया था ताकि तुरंत धन जुटाया जा सके। गौर हो कि जीएसटी राज्यों के लिए राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत है। झारखंड ने खनिजों पर कोविड उपकर लगाया, जबकि पंजाब ने शराब पर अधिक टैक्स लगाया। दिल्ली ने शराब पर 70% कोरोना सेस लगाया, जिसे जून में वापस ले लिया गया लेकिन वैट बढ़ा दिया गया।
बिजनेस डेली ने ग्रांट थॉर्नटन भारत एलएलपी टैक्स के राष्ट्रीय नेता के हवाले से लिखा कि सच्चाई यह है कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा, विशेष रूप से एमएसएमई और व्यक्तिगत टैक्सपेयर्स पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, और कई परिवार नौकरी के नुकसान और वेतन कटौती के कारण वित्तीय रूप से संघर्ष कर रहे हैं, टैक्स दरों पर यथास्थिति बनाए रखना जरूरी है।
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