नई दिल्ली : भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) जो कोविशील्ड वैक्सीन बना रही है, उसे ब्रिटेन की एस्ट्राजेनेका कंपनी और ऑक्सपोर्ड यूनिवर्सिटी के सहयोग से विकसित किया गया है। केंद्र सरकार ने पहले भारत में कोविशील्ड की दो डोज के बीच 4 हफ्तों का अंतर रखा था। फिर उसे बढ़ाकर 6 से 8 हफ्ते कर दिया गया था। लेकिन, हाल ही में इस वैक्सीन की दोनों डोज के बीच के अंतर को बढ़ाकर 12 से 16 हफ्ते कर दिया गया है। सरकार के इस फैसले को लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। पहली डोज लगवा चुके कुछ लोग आशंकित हैं कि कहीं इसके चलते उनकी डोज का प्रभाव खत्म तो नहीं हो जाएगा?
कुछ लोग इस वजह से विरोधी सुर में बोल रहे हैं कि असल में ऐसा करके सरकार वैक्सीन की किल्लत पर पर्दा डालना चाह रही है। जाहिर है कि अगर वैक्सीन की कमी के चलते ऐसे फैसले लिए जाएं तो वह बहुत ही नुकसानदेह साबित हो सकते हैं ! लेकिन, क्या वाकई ऐसा है? इससे पहली डोज से पैदा हुई रोग-प्रतिरोधक क्षमता बेकार चली जाएगी? लेकिन, तसल्ली रखिए ऐसा कुछ नहीं होने वाला। इससे वैक्सीन की सुरक्षा कवर और भी मजबूत हो जाएगी। यह कहना है इस वैक्सीन को डेवलप करने वाले ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिक एंड्र्यू पोलार्ड का।
कोरोना वायरस के खिलाफ ऑक्सपोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को एंड्र्यू पोलार्ड और सराह गिलबर्ट नाम के वैज्ञानिकों ने ब्रिटेन के ऑक्सपोर्ड यूनिवर्सिटी में मिलकर विकसित किया है। पोलार्ड ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप के हेड हैं और उन्होंने टाइम्स इवोक से बातचीत में अपनी वैक्सीन को लेकर खुलकर बातचीत की है और तमाम सवालों और आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की है। जब उनसे इस वैक्सीन को लेकर दुनियाभर में ब्लड क्लॉट्स के मामलों को लेकर सवाल पूछे गए तो उन्होंने कतई वैक्सीन की संभावित साइड इफेट को लेकर उलझाने की कोशिश नहीं की। उन्होंने साफ कहा कि ‘इस समय सबसे बड़ी चिंता ये है कि कोविड-19 वायरस दुनियाभर में लाखों लोगों को मार रहा है और मौजूदा लहरों में कितने और मौतों की आशंका है। अगर आप वायरस के जोखिम से ब्लड क्लॉट की तुलना करेंगे तो ऐसा होने की संभावना बहुत ही कम है और वायरस से प्रभावित होने की आशंका बहुत ही ज्यादा है।’ उन्होंने कहा कि ‘यदि आप ऐसे इलाके में हैं जहां संक्रमण बहुत ज्यादा फैली हुई है तो वैक्सीनेशन करवाना कहीं ज्यादा बेहतर है, क्योंकि इसमें जोखिम बहुत ही कम है। लेकिन, यदि आप ऐसी जगह में हैं जहां बहुत ज्यादा वैक्सीन हैं और बीमारी नहीं के बराबर है तो अलग फैसला ले सकते हैं।’
एक सवाल कोरोना वायरस के नए वेरिएंट को लेकर भी उठ रहे हैं। सवाल पूछा गया कि पैदा हो रहे वेरिएंट पर एस्ट्राजेनेका वैक्सीन कितनी कारगर है? इसपर पोलार्ड बोले, ‘जब तक वायरस का ट्रांसमिशन होता रहेगा वह वेरिएंट पैदा करेगा। दुनिया की पूरी आबादी को वैक्सीनेशन करने में अभी बहुत देरी है, इसलिए हम तरह-तरह की वेरिएंट आते देखेंगे। हालांकि, हम पूरी तरह से आशांवित हैं कि इस दौर की वैक्सीन टीका ले चुके लोगों की इम्यूनिटी बढ़ाने में काफी कारगर है। इसलिए ज्यादातर लोग गंभीर बीमारी, हॉस्पिटलाइजेशन और मौत से सुरक्षित हैं।’
भारत में सबसे बड़ा सवाल एस्ट्राजेनेका या कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच के गैप बढ़ाने को लेकर उठ रहे हैं। यही नहीं इस दौरान यूके में गैप को कम भी कर दिया गया है। इस सीधे सवाल पर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक ने साफ लफ्जों में बताया कि ‘दो डोज के बीच के पहले तीन महीने में मजबूत सुरक्षा दिखाने के लिए हमारे पास बहुत ही अच्छे आंकड़े मौजूद हैं। तीन महीने का यह अंतराल बहुत ही बढ़िया सुरक्षा देता है- यह अंतराल अगर तीन से चार महीने कर दिया जाए तो और भी बेहतर है। ज्यादा अंतराल की वजह से दूसरी डोज के बाद बहुत ही मजबूत रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है।’ वो बोले की ‘यूके ने इस अंतराल को बी.1.617 वेरिएंट की वजह से पैदा हुए हालातों की वजह से बदला है, ताकि इम्यूनिटी बढ़ाकर ट्रांसमिशन को रोका जा सके। लेकिन, अधिकतम रोग-प्रतिरोधक क्षमता के लिए ज्यादा इंतजार करना ही फायदेमंद है।’
ऑक्सफोर्ड वैज्ञानिक एंड्र्यू पोलार्ड का कहना है कि अभी भी ऐसे सबूत बहुत ही कम हैं कि कोरोना वायरस बच्चों को गंभीर रूप से बीमार कर रहा है। उनका कहना है, ‘ज्यादातर आबादी में ऐसा हमने नहीं देखा है और इस समय तक यह बहुत ही असामान्य और दुर्लभ घटना है। इसलिए हमें वैक्सीन की जो भी डोज उपलब्ध है, उन्हें दुनियाभर के व्यस्कों पर फोकस करना होगा, जो ज्यादा जोखिम में हैं। मेरा मानना है कि बच्चों का टीकाकरण शुरू करने से पहले (जिन्हें अभी भी कम खतरा है) ज्यादा जोखिम वालों को वैक्सीन लगनी चाहिए। पूरी महामारी के दौरान के जो भी आंकड़े उपलब्ध हैं, वह लगातार यही बताते हैं कि बच्चों में गंभीर बीमारी का खतरा कम है। ज्यादा व्यस्क लोग और पहले से बीमार लोगों को अधिक खतरा है। जितने भी वैक्सीन हैं, पहले उन्हें लगाएं।